क्या कहूं!




क्या कहूं
ज़माने के बारे में 'आश्या',
यहां किड़ो के पीछे उसकी झुंड है
और असली शेर तन्हा है।

क्या कहूं
परेशानी के बारे में'आश्या',
पता नहीं कौनसी बात परेशान करती है
न ही वो परेशानी लफ़्ज़ में बयान होती है।

क्या कहूं
ज़िन्दगी के बारे में 'आश्या',
ये एक तमाशा है
जो उम्र भर देख रहे हैं।

क्या कहूं
अपनों के बारे में 'आश्या',
तमाशा करती है ये ज़िन्दगी जब
अपने ही तमाशाई बनते है तब।

क्या कहूं,
ग़ज़ब की बात 'आश्या',
ग़ज़ब है कि तालियां बजाते हैं अपने तब
तमाशा बनाती है अपना ये ज़िन्दगी जब।

क्या कहूं
भीड भाड के बेगाने लोगों पर 'आश्या',
वो बेगाने भी तालियां बजाते हैं तब
तमाशा देख के मज़ा लेते है सब।

क्या कहूं
लोगों के चेहरे पर 'आश्या',
वो तो उसे साफ़ रखते है
जिस पर लोगों की नज़रें जाते है।

क्या कहूं
लोगों के दिल ओ नियत पर 'आश्या',
दिल ओ नियत को लोग साफ़ रखते हैं कहां
ख़ुदा की नज़र होती है जहां।

क्या कहूं
नमाज़ ए इश्क़ की अज़मत पर,
नमाज़ ए इश्क़ का यूं सिलसिला है
जहां इन्तज़ार सिर्फ़ अज़ान होने का है।

क्या कहूं
दोस्तों के बारे में 'आश्या',
दोस्त बनकर भी नहीं वो साथ निभाने वाले
यही अन्दाज़ है उनके ज़ालिम ज़माने वाले।

क्या कहूं
वक़्त ओ तारीख़ के दस्तूर पर,
कई बार इनके जोड़ ठीक होते है,
पर वक़्त ठीक हो ये तो ज़रूरी नहीं।

क्या कहूं
सारी उम्र के बारे में,
गुज़र जाती है यह उम्र सारी
किसी को किसी में ढूंढने में।

क्या कहूं
इत्तेफ़ाक़ पर 'आश्या',
अजीब इत्तेफ़ाक़ हुआ है
काफ़िर से मिलके दिल साफ़ हुआ है।

क्या कहूं
तारीफ़ ए हुस्न ए यार,
इश्क़ में चेहरे का क्या काम
रंग सांवला हो तो भी क़ातिल लगता है यार।

क्या कहूं
मुहब्बत और इज्ज़त पर 'आश्या',
लोग ले तो लेते है
मगर देना भूल जाते है।