हम चाहते ही नहीं हमें मुहब्बत हो जाए,
क्योंकि हमने मुहब्बत का बुरा नतीजा देखा है।
जो करता था दावा वफ़ा का,
उसे बनते बेवफ़ा देखा है।
मुहब्बत उतनी हसीन नहीं,
जितना शायर उसे लफ़्ज़ लेकर सजाते हैं।
मुहब्बत करना ग़लत तो नहीं,
ग़लत शख़्स से मुहब्बत होना ज़ख्म देकर जाते है।
नाज़ करते हैं वो अपनी मुहब्बत पर,
जब तक वो बेवफ़ाई की ठोकरें नहीं खाते हैं।
और जो होगी मुहब्बत,
चेहरे पर उदासियां छा जाते है।
उसे खोने का डर रहेगा,
उससे बिछड़ जाने का रहेगा हमें डर ।
उससे एक दिन बात न होना हमें परेशान करेगा,
उससे मुलाक़ात न होना हमें मायूस करेगा उस पहर।
वो हमसे अपने मुताबिक़ रहने की उम्मीद करेगा,
मगर हमारी एक बात नहीं मानेगा।
उसकी बात न सुनने पर हमसे बहस करेगा,
उसका वो कड़वा लहजा हमें अच्छा नहीं लगेगा।
मुहब्बत जुनून में बदल जाएगी,
उसे ग़ैरों से बात करते हुए देखकर हमें बुरा लगेगा।
उसे मेरा शिकवा करना शक करना लगेगा,
उससे शिकवा किए तो वो उल्टी बात करेगा।
मुझमें इससे उदासी छाएगी,
जो छाएगी उदासी हमें नींद नहीं आएगी।
नींद न आने पर हमारा चेहरा मुरझा जाएगा,
न जाने कब तक वो मुझसे नज़रें चुराएगा, मुझे टालेगा।
मेरे चेहरे पर से गया हुआ नूर देखकर,
वो मुझसे नज़र चुराएगा।
हमसे तंग आकर मन भरकर,
वो दूसरा ढूंढकर उसे बनाएगा।
वो ही शर्मींदा होगा मुझसे,
मेरी हालत देखके।
वो मुझसे नज़रें चुराए,
ऐसी क्यों नौबत आए।
अब की सदी में,
मुहब्बत मिल जाने पर वो क़दर कहां करता है।
जिसे मिल जाए,
वो सब्र कहां करता है।
मेरी सच्ची मुहब्बत, मेरा ख़ालिस दिल देखके,
उसे मेरी मुहब्बत को शक का नाम देना है।
मुझसे बेज़ार होकर मुझसे बिछड़ने का बहाना बनाके,
ज़माने में मुझे ही बेवफ़ा कहकर बदनाम करना है।
इसलिए हम चाहते ही नहीं,
हमें मुहब्बत हो जाए।
क्योंकि हमने मुहब्बत का बुरा नतीजा देखा है।
जो करता था दावा वफ़ा का,
उसे बनते बेवफ़ा देखा है।
मुहब्बत उतनी हसीन नहीं,
जितना शायर उसे लफ़्ज़ लेकर सजाते हैं।
मुहब्बत करना ग़लत तो नहीं,
ग़लत शख़्स से मुहब्बत होना ज़ख्म देकर जाते है।
नाज़ करते हैं वो अपनी मुहब्बत पर,
जब तक वो बेवफ़ाई की ठोकरें नहीं खाते हैं।
और जो होगी मुहब्बत,
चेहरे पर उदासियां छा जाते है।
उसे खोने का डर रहेगा,
उससे बिछड़ जाने का रहेगा हमें डर ।
उससे एक दिन बात न होना हमें परेशान करेगा,
उससे मुलाक़ात न होना हमें मायूस करेगा उस पहर।
वो हमसे अपने मुताबिक़ रहने की उम्मीद करेगा,
मगर हमारी एक बात नहीं मानेगा।
उसकी बात न सुनने पर हमसे बहस करेगा,
उसका वो कड़वा लहजा हमें अच्छा नहीं लगेगा।
मुहब्बत जुनून में बदल जाएगी,
उसे ग़ैरों से बात करते हुए देखकर हमें बुरा लगेगा।
उसे मेरा शिकवा करना शक करना लगेगा,
उससे शिकवा किए तो वो उल्टी बात करेगा।
मुझमें इससे उदासी छाएगी,
जो छाएगी उदासी हमें नींद नहीं आएगी।
नींद न आने पर हमारा चेहरा मुरझा जाएगा,
न जाने कब तक वो मुझसे नज़रें चुराएगा, मुझे टालेगा।
मेरे चेहरे पर से गया हुआ नूर देखकर,
वो मुझसे नज़र चुराएगा।
हमसे तंग आकर मन भरकर,
वो दूसरा ढूंढकर उसे बनाएगा।
वो ही शर्मींदा होगा मुझसे,
मेरी हालत देखके।
वो मुझसे नज़रें चुराए,
ऐसी क्यों नौबत आए।
अब की सदी में,
मुहब्बत मिल जाने पर वो क़दर कहां करता है।
जिसे मिल जाए,
वो सब्र कहां करता है।
मेरी सच्ची मुहब्बत, मेरा ख़ालिस दिल देखके,
उसे मेरी मुहब्बत को शक का नाम देना है।
मुझसे बेज़ार होकर मुझसे बिछड़ने का बहाना बनाके,
ज़माने में मुझे ही बेवफ़ा कहकर बदनाम करना है।
इसलिए हम चाहते ही नहीं,
हमें मुहब्बत हो जाए।