हदें पार!

 




ये कैसा दीवानगी का हुनर,
दीवानगी की सारी हदें पार!
सच्चाई उसकी खुली क़िताब की तरह होकर भी, 
ख़ुद को धोखे में रखने की सारी हदें पार!

ये कैसी सादगी ये कैसी नादानी,
सामने होके भी उसके सारे झूठ बेशुमार!
उसके बोल में फंसे उसपर आंखें बंद करके,
यकीन करने की सारी हदें पार!

ये कैसी मुहब्बत है उसकी उससे,
जो उसके होते हुए भी रखता और दो चार!
दुनिया समझाती है उसको वो बन्दा उसके लिए सही नहीं,
उसकी दुनिया को बेवकूफ़ में गिनने की बेवकूफ़ी की हदें पार।


ऐसा ही सिलसिला ये अगर चलता रहा,
आगे जाके रोएगी पछताएगी वो बेशुमार।
ख़ैर पछताने दे उसे,
कर ही बैठी है वो अब तलक वहम में रहने की हदें पार।