एक अजीब सा।



एक अजीब सा
पहरा है,
ज़िन्दग़ी की उलझनों में
इन्सान घेरा है।

एक अजीब सा
पाबंद है,
ज़िन्दगी आज़ाद है
हम उसूलों में बंद है।

एक अजीब सा
शहर है,
यहां लोग दिखाते शहद है
पिलाते ज़हर है।

एक अजीब सा
उस नींद में सुकून होता है,
जब दिल में न ख़लिश होती है
न दिमाग़ में जुनून होता है।



एक अजीब सा
उस से हमारा रिश्ता है,
हम उसे मरने नहीं देते है
वो हमे जीने नहीं देता है।

एक अजीब सा
सुकून है उस हिचकी में,
जो किसी का नाम लेने से
रुक जाती है चुटकी में।


एक अजीब सा
हाल है ज़िन्दगी का,
एक तरफ़ क़िस्मत सो रही है
और शुमार नहीं जागे हुए लोगों की गंदगी का।


एक अजीब सा 
इन दिनों दर्द है,
दर्द अल्फ़ाज़ में बताए तो अनसुना करते हैं
गुस्से के ज़रिए जताए तो कहते है हम बेदर्द है।




एक अजीब सा
किस्सा रहेगा ज़िन्दगी भर,
बेगाने हाल पुछेंगे,
और खुद को अपना कहनेवाले हम से बेखबर!

एक अजीब सा
हिसाब है ज़हर का,
पिना पड़ता है ज़िंदा रहने के लिए बहुत
मरने के लिए थोड़ा सा।

एक अजीब सा
हाल बनाया है,
शायद किसी का 
ख़्याल आया है।

एक अजीब सा
ख़्याल है,
किस वजह से रात को नींद नहीं आती
ऐसे कई ज़हन में सवाल हैं।


ख़लिश : Dissatisfaction, pain, Unease