ज़हनी बिमारी




कोई नहीं बता सकता 
कोई मेरी परेशानी मेरी तक़लीफ़ को
महसूस नहीं कर सकता
मेरे उन ज़ख्मों को ठीक करने की ज़रूरत है
मेरे जिन ज़हनी ज़ख्मों को कोई नहीं परख सकता।

मेरी हर बात का मज़ाक उड़ जाता है 
मज़ाक?
क्या उनको शरम आती है
जब वो मुझे बेवकूफ नामों से पुकारते हैं!
ज़हनी बीमारी कोई मज़ाक लगता है उन्हें!

जिस्मानी बिमारी तो आंखों से देख लोगे 
ए दोस्त उसका क्या जो ज़हनी थका हो
इन्सान का अगर जिस्म थक जाए 
वो आराम करके अपनी थकान मिटा लेता है
पर इन्सान का ज़हन अगर थक जाए तो
ज़माने का कोई भी आराम उसके लिए 
आराम का सबब नहीं बनता है।

अफ़सोस मैं भी इसी ज़हनी थकावट का शिकार हूं
नींद के बग़ैर मेरी आंखें थकी हुई
मेरा ज़हन-दिमाग़ थका हुआ
सारी रात रोता रहा
तकिया मेरे आंसुओं से
और मैं जज़्बाती तौर पर सूख गया।

तोड़ डालेंगे वो मेरी ख़ामोशी को
मैं तन तन्हा होऊंगा जब 
वो देख नहीं पाएंगे जब।
दरख़्त के नीचे 
घास में बिछे।

आज मुझे अपने अल्फ़ाज़ का इज़हार करने दो
मुझे बोलने दो मैं और मेरी ज़हालत
तुम बदतमीज़ ख़ुदग़र्ज़
मैं कमज़ोर नहीं हूं
मैं अपने ख़्यालात के साथ हर दिन लड़ता हूं
और इस में तब्दीली आएगी
अब मैं अपने रास्ते पर हूं।
            - एक ज़हनी बिमार इन्सान