इंकार ही कर दीजिए, इकरार नहीं तो
उलझन ही में मर जाएगा, बीमार नहीं तो
लगता है कि पिंजरे में हैं, दुनिया में नहीं हूँ
दो रोज़ से देखा कोई, अख़बार नहीं तो
दुनिया हमें नाबूद ही, कर डालेगी इक दिन
हम होंगे अगर अब भी, ख़बर-दार नहीं तो
कुछ तो रहे अस्लाफ़ की, तहज़ीब की खुश्बू
टोपी ही लगा लीजिए, दस्तार नहीं तो
हम बरसर-ए-पैकार, सितमगर से हमेशा
रखते हैं कलम हाथ में, तलवार नहीं तो
भाई को है भाई पे, भरोसा तो भला है
ऑगन में भी उठ जाएगी, दीवार नहीं तो
बे-सूद हर इक कौल, हर इक शेर है 'आश्या'
गर उस के मुआफ़िक़ तिरा, किरदार नहीं तो
उलझन ही में मर जाएगा, बीमार नहीं तो
लगता है कि पिंजरे में हैं, दुनिया में नहीं हूँ
दो रोज़ से देखा कोई, अख़बार नहीं तो
दुनिया हमें नाबूद ही, कर डालेगी इक दिन
हम होंगे अगर अब भी, ख़बर-दार नहीं तो
कुछ तो रहे अस्लाफ़ की, तहज़ीब की खुश्बू
टोपी ही लगा लीजिए, दस्तार नहीं तो
हम बरसर-ए-पैकार, सितमगर से हमेशा
रखते हैं कलम हाथ में, तलवार नहीं तो
भाई को है भाई पे, भरोसा तो भला है
ऑगन में भी उठ जाएगी, दीवार नहीं तो
बे-सूद हर इक कौल, हर इक शेर है 'आश्या'
गर उस के मुआफ़िक़ तिरा, किरदार नहीं तो